कल्याण
भारत सरकार द्वारा पूर्व मध्यप्रदेश के मैदानी इलाके में 1950 के अन्तिम वर्षों में बसाया गया यह नगर आज छत्तीसगढ़ का एक औद्योगिक केन्द्र व भरा-पूरा नगर है। नगर का केन्द्र बिन्दु भिलाई इस्पात कारखाना है। आज भिलाई इस क्षेत्र में सभी आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक, शैक्षिक तथा खेल-कूद गतिविधियों का उदगम बिन्दु है। भिलाई अपनी उत्पादन परिसम्पत्तियों का श्रेष्ठतम उपयोग करने के साथ-साथ अपने कर्मचारियों, उनके परिवारों और आम जनता को यथासंभव सुखद जीवन उपलब्ध कराने पर विश्वास करता है।
9103 एकड़ इलाके में फैली इस्पात नगरी के 16 सेक्टरों में 35,954 से भी अधिक क्वार्टर हैं। प्रत्येक सेक्टर स्कूलों, स्वास्थ्य केन्द्रों और दुकानों की दृष्टि से आत्मनिर्भर है। 535 किमी. लम्बी व चौड़ी पक्की सड़कें तथा चारों ओर फैला हरा-भरा क्षेत्र इस नगर की विशेषताएं हैं। भिलाई इस्पात कारखाने द्वारा खानों सहित नगरी में चलाए जा रहे 48 स्कूलों में 30,500 से अधिक छात्र तथा लगभग 854 शिक्षक हैं। यहां छात्रों को अपनी प्रतिभा निखारने के पर्याप्त अवसर प्राप्त हैं और सैकड़ों छात्र हर वर्ष देश के प्रतिष्ठित व्यावसायिक कॉलेजों व संस्थानों में प्रवेश पाते हैं। भिलाई इस्पात नगरी में उपलब्ध कराई जा रही उच्च श्रेणी की शिक्षा सुविधाओं का इससे बड़ा प्रमाण क्या हो सकता है कि भिलाई के दो छात्र आईआईटी-जेईई परीक्षा में सर्वोच्च स्थान प्राप्त कर चुके हैं तथा इस्पात नगरी हर वर्ष सैकड़ों बच्चे शैक्षिक संस्थानों में भेजती है।
स्वास्थ्य
भिलाई में प्राप्त विस्तृत स्वास्थ्य सुविधाओं का शीर्ष यहां का जेएलएन अस्पताल एवं अनुसंधान केन्द्र है। 860 बिस्तरों वाला यह अस्पताल इस क्षेत्र का सबसे ख्यातिप्राप्त अस्पताल है। यहां न केवल भिलाईवासियों बल्कि भिलाई के आसपास के क्षेत्र के लोगों का भी ईलाज किया जाता है। आधुनिक सीटी स्केन, आण्विक निदान उपकरणों से युक्त इस अस्पताल के ओपीडी विभाग में हर वर्ष 12 लाख से अधिक रोगी आते हैं। वर्ष 2007-08 में अस्पताल में 49,450 रोगी भर्ती किए गए। अस्पताल गम्भीर रोगों से पीड़ित रोगियों के उपचार में पूर्ण रूप से समर्थ है। इसके अतिरिक्त भिलाई में 10 स्वास्थ्य केन्द्र, खानों के अस्पताल सहित 5 अस्पताल, 1 राष्ट्रीय व्यावसायिक स्वास्थ्य एवं सेवा केन्द्र तथा कारखाने के भीतर एक चिकित्सा शिविर भी कार्य कर रहा है। अस्पताल का अपना विशिष्ट स्थान है तथा यहां दिल के ऑपरेशन, किडनी प्रत्यारोपण, बच्चों के ऑपरेशन, दिमाग के ऑपरेशन तथा लेप्रोस्कोपी रोज़ होते रहते है।
इस्पात कारखाना भिलाई में एक नर्सिंग कालेज भी चला रहा है। अब तक इस कॉलेज में लगभग 600 नर्सें शिक्षा प्राप्त कर राज्य के भीतर और बाहर रोजगार प्राप्त कर चुकी हैं। क्षेत्र के नर्सिंग स्कूलों को नर्सिंग कॉलेज से सम्बद्ध किया गया है तथा उन्हें नियमित शिक्षा व अस्पताल के भीतर प्रशिक्षण की सुविधाएं उपलब्ध कराई जा रही हैं।
निगमित सामाजिक उत्तरदायित्व
इस्पात कारखाने ने आसपास के क्षेत्र के विकास का कार्य पूरी गम्भीरता से अपने हाथ में लिया है और इन क्षेत्रों में ग्रामीण मूल सुविधाएं उपलब्ध कराने, प्रौढ़ शिक्षा तथा सामुदायिक स्वास्थ्य कार्यक्रमों पर ध्यान केन्द्रित किया जा रहा है। कारखाने द्वारा आसपास के क्षेत्रों के विकास कार्यक्रम के अन्तर्गत गतिविधियों का प्रभाव क्षेत्र अब भिलाई के 16 किमी. दायरे के बाहर भी देखा जा सकता है। इन क्षेत्रों में हैण्ड पम्पों की स्थापना, कुओं की खुदाई, स्कूली भवनों, सड़कों व पुलियाओं के निर्माण के साथ-साथ स्वास्थ्य व पशु चिकित्सा शिविरों का भी आयोजन किया जा रहा है। हर महीने आसपास के गांवों में औसतन 21 निःशुल्क स्वास्थ्य शिविर आयोजित किए जाते हैं। विशेष नेत्र शिविर लगाए जाते हैं और उसके बाद कैटेरेक्ट ऑपरेशन व लैंस लगाने तथा ऑपरेशन के उपरान्त मरीज की देखभाल भी नियमित रूप से की जाती है।
आदर्श इस्पात ग्राम:
भिलाई के आसपास के 21 गांवों की पहचान की गई है। इन गांवों में ग्रामीण जनता को, विशेषकर महिलाओं को सशक्त बनाने के लिए कार्य किया जा रहा है। महिलाओं के लिए स्वयंसिद्ध या स्वयं रोजगार योजनाएं चलाई जा रही हैं। इन गांवों में मूल सुविधाएं उपलब्ध कराने के साथ-साथ स्कूली बच्चों को उनकी प्रतिभा में निखार लाने में भी मदद दी जा रही है।
निःशुल्क शिक्षा व उपचार: इस्पात कारखाने ने इस्पात नगरी और आसपास के क्षेत्र में रहने वाले समाज के पिछड़े वर्ग के लोगों के लिए 2007 में भिलाई इस्पात विकास विद्यालय और इस्पात कल्याण चिकित्सालय की स्थापना की है। कारखाने ने 100 से अधिक आदिवासी बच्चों को अपनी देख-रेख में लिया है। इन्हें होस्टलों में निःशुल्क रहने व शिक्षा तथा भोजन दिया जा रहा है। भिलाई आदिवासी स्कूली बच्चों के लिए 2006 से लगातार नारायणपुर में खेल-कूद प्रतियोगिता का आयोजन कर रहा है। इनमें बस्तर के दूर-दराज के इलाकों के स्कूलों के 1500 छात्र भाग लेते हैं। भिलाई ने अबूझमार क्षेत्र से 4 बालिकाओं को भी अपनी देख-रेख में लिया है। इन्हें भिलाई नर्सिंग कालेज में शिक्षा उपलब्ध कराई जा रही है।
खेल-कूद एवं संस्कृति
भिलाई में वर्ष भर खेल-कूद व सांस्कृतिक गतिविधियों की हलचल दिखाई देती रही है। यहां उपलब्ध 6 स्टेडियम, 1 राष्ट्रीय हैण्डबाॅल अकादमी, सेल एथलेटिक्स अकादमी तथा प्रशिक्षण सुविधाओं के कारण यह किसी भी अन्य शहर से लोहा ले सकता है। भिलाई ने देश को दर्जनों पुरुष व महिला खिलाड़ी दी हैं। इनमें बोर्सिलोना ओलम्पिक्स के प्रतियोगी राजेद्र प्रसाद, क्रिकेट खिलाड़ी राजेश चैहान, पावर लिफ्टर कृष्ण साहू, बैडमिन्टन खिलाड़ी संजय मिश्र आदि शामिल हैं। भिलाई में प्रशिक्षण प्राप्त अनेक खिलाड़ी राष्ट्रीय व अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर खेलों में भाग ले चुके हैं। छत्तीसगढ़ राज्य बनने के पश्चात भिलाई में राष्ट्रीय तथा राज्य स्तर की प्रतियोगिताएं आयोजित हो चुकी हैं।
सांस्कृतिक क्षेत्र में भिलाई के प्रतिनिधियों में विख्यात पाण्डवानी कलाकार पद्म भूषण श्रीमती तीजनबाई और स्वर्गीय श्री देवदास बंजारे तथा उनका पांथी नृत्य दल को आज भी सम्मान से याद किया जाता है। पिछले 32 वर्षों से भिलाई में छत्तीसगढ़ लोककला महोत्सव आयोजित किया जा रहा है जो न केवल इस क्षेत्र की संस्कृति का परिचायक है बल्कि अनेक प्रतिभाओं को राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रसिद्धि दिलाने में सहायक सिद्ध हुआ है।
मनोरंजन
जब इस्पातकर्मी और उनके परिवार के सदस्य इस्पात निर्माण के कठोर कार्य से समय पाते हैं वे मैत्रीबाग की ओर मुंह करते हैं। यहां देश का सबसे बड़ा संगीतमय फव्वारा है। मैत्रीबाग में हरे-भरे लॉन, क्षेत्र का सबसे बड़ा चिड़ियाघर, एक कृत्रिम झील और नौकायन सुविधा, बच्चों की रेलगाड़ी तथा प्रगति मीनार वातावरण में चार चांद लगाती है। भिलाई के सिविक सेन्टर में कर्मण्ये वाटिका मनोरंजन का नया केन्द्र बन कर उभरी है।